सङ्घर्ष

✍️प्रियँका झा

हौ घुना बला भैया

एना नइ बजाब’ घुना
हम नइ कान’चाहैछी एखन
तोहर वेदनाके गीत सुनिक’
आ’ नइ भिजब’ चाहैछी
नोरसँ अपन आँखि ।
चारूकात अखन हमरा
जोतबाक अछि हर
करबाक अछि उबर खाबरके
सरि बराबर
छिटबाक अछि खेतमे
रंग बिरंगक बिछनसभ
लगेबाक अछि फूलबारीमे
नव नव फुल
आ ओकरे सुगन्धसँ
महमहेबाक अछि
एकटा नवका भोर ।
तोहर सभक सातो सुरमे
उदासी छह
लाचारी छह
करुणा छह
वेदना छह
हमरा कमजोर नइ कर तोसभ
एहन धुन सुनाक
हमरा प्रकृतिसँ
लड़बाक अछि अखन
आ छिटबाक अछि
चेतनाक बिछन
मानवताक बिछन।
हौ बासुरीबला भैया
तहु नइ बजाब’ एना
बासुरीक मधुरगर धुन
हम नाँचि–नाँचिक’
नइ थाक’ चाहैछी
तोहर बासुरीक धुनपर
किएकी हमरा
अपन कला–साहित्य
आ’ अपन मातृभाषा ल’क
करबाक अछि अखन
बहुते सङ्घर्ष आ’
चढबाक अछि ओकरा ल’ कए
विश्वक सर्वोच्च शिखर
सगरमाथा पर ।

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