पिल्सिन ( मैथिली लघुकथा )

 देवेन्द्र मिश्र  (छिन्नमस्ता-१, सप्तरी, हाल राजविराज-२)

ताब लौकडाउन शुरु नइँ भेल रहै । गामस आबै छलू सिटी प । हमेँ दुए गोड़े ब‌ैठल छलू । सैबटा सिट खालिए छलै । गोरगम्मा लग दूगो जनी जाइत सिटीक रोकलक । सिटीबला रोक देलकै आ हल्ला क क बजलै बीस बीस टका लगतौ ।।।।।।

एक गोड़े बाजल – कथीके बीस टका ?
कथीके ? सिटीप चढ़भी, तक्कर ।

दोसर जनी कहलक-बौवा, दशे टका छौ, पिल्सिन आने जाइ छियौ । दुनु गोडे़के बीस टका द देबौ । हेगौ, सचिब्बा कहलकै अए जनु चारिए बजे तलिक रहतै इसकुल प । नइँ त लरिते लरिते चलि जाइतियै ।
सिटीबला बजलै- अछा अछा चढ़ि ले । तोराआउरके एहिना रहै छौ । एक गोडे़ बाजल( आइँ रौ, गौवाँ छिही, तबो कइले एना करै छिही ?
हँ,हँ । गौवाँ ने तौवाँ, गौवाँ हमर पेट भरतौ ग ?

एक छन सैब चुप्पे रहल । अगाँमे टेक्टर छलै,रस्ता फैल नइ छलै, सीटीबला सवधान छल । जब रस्ता किलियर भेलै, तब सिटीबला पुछलक( आएँ गौ मैयाँ, आइ त तोरा चिन्हबो ने केलियौ ?
किए, आँखि मोटा गेलौअ ?

नइँ गौ, आइ सिङार-पेटार बेसी देखै छियौ । आङीयो लबका देखै छियौ । मार बाढै़न, कथी देखैछी सिङार रौ ? ई आङी त पुरने छियै,बलु कतौ जाइ-अबै कला पिन्है छियै ।
हमहू ताकलू ओकरा दिसन । उजरा केस चमकि रहल छलै, तेल कनी बेसिए पड़ि गेल छलै मथामे ।

सिटीबला बाजल- आइ काइल पुतौह बहुते मानै हउ की ?

हँ रौ, से त बुझिते छिही,कते मानै हइ । आर दिन त जे हो से हो, बिरधा पिल्सिन आनै दिन भोरेस चड़ियाबैत रहै हइ आ बहुते निम्मनस बाजै हइ । आन दिना त तेलक डिब्बा देखबो नै करै छियै, महज पिल्सिन आनै दिना लहाइए द‌इ हइ तेलस। तकरा बाद तु बुझिते छिही तुहूँ ।
हँ हँ, सैबटा बुझै छियै । टका हाथमे दैते मातर बोली बेबहार बदैल जाइ हउ ने ?

हे रै, रोक रोक । अही ठिना आबैलु कहने छलै सचिब्बा । दुनू टबा जनी जाइत उतैर गेल । हम दुनू गोडे़ एक दोसर दिसन ताकै लागल छलू । सिटी अगाँ बढ़ि गेल छलै ।

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