कन्या पूजन (लघु कथा)

करुणा झा

नवरात्री शुरु भऽ गेल अछि आ हमर लाल काकी दू दिन पहिनेसऽ घर आँगन नीप कऽ पूजापाठके सब ओरियान कऽ लेने छथि । प्रत्येक वरिष नवरात्रीमें माँ भगवती के आराधना करैत छथि, नओ दिन धरि व्रत उपवास राखि दुर्गा के नव रुप के पूजा बहुत ही विधि विधान सँ करैत छथि ।

माताके भोर साँझ भजन गाबि कऽ पुकारैत छथि हे माता हमरा घर आउ । आ नवमीके दिन कन्या पूजन करै छथि । हुनकर छोटकी पुतोह गर्भवती छलीह । लाल काकी के पोता चाहैत छल हुनका नजरिमें बेटी कोनो सन्तान होई छई ओ त दोसर घर चलि जाइत अछि वंश त बेटा सँ बढैत अछि । हुनका कहि कऽ जँच करौलनि मालुम भेलानि जे कन्या आबय वाली छथि हुनकर रंग उडि गेलनि नवरात्री सँ दु महिना पहिले के ई बात अछि । ओ अपन पुतोह के पेटमे पलि रहल कन्या के भ्रूण हत्या करब देलनि ।

आई नवरात्रीके अन्तिम दिन महामनवमी अछि आ आई ओ कन्यापूजन करै छथि बहुत पुण्य होइ छई । कुमारी कन्याके पूजन सँ भोरेभोरेसऽ बडबडाइत छथि कन्याके पूजा कऽ हुनका नबका कपडा आ दान दक्षिणा देलासँ भगवति बड प्रसन्न होइत छथिन्, साक्षात भगवती स्वरुप होई छथि कन्या । चुल्हा पर तस्मय चढा कऽ आस पडोस मे कन्या सक के ताक चलि गेली कन्या पूजन लेल ।

मैया अबियौं हमरा अंगना
कल जोडने ठाढ छी ना
गीत कऽ आवाज आबि रहल छल । ई केहेन कन्या पूजन अछि ।
(प्रस्तुत लघु कथाक लेखिका करुणा मैथिली, हिन्दी र नेपाली भाषामा कलम चलवैत छथि । सं.)

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