मैथिली गजल 

नन्दलाल आचार्य

केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?

नाम जपिक खाइबला भेलै बुद्धिमान्
भ्रष्ट पदलोलुप मात्रे महान् देखैछी ।

केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?

बहुत भेलै विचारके रौदी यत्रतत्र
पैग स्वरक मात्रे यसगान देखैछी ।

केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?

दोसरके छिट्की मारि आगा बडैबालाके
कोहुलका नेपालके दरबान देखैछी ।

केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?

पसिनाके मूल्य खोजतेखोजते हम त
बडका छोडका सबके एकसमान देखैछी ।

केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?

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