लघु कथाः सिरहावाली

 

राम विनय यादव (परसा, लक्ष्मीपुर पतारि गा.पा.२, हाल लहान,सिरहा)

निलम, हमर घरवाली छी । ओना हमरा कोनो बाहरवाली नहि छै । मुदा लोकसब पत्नीकेँ घरबाली कहै छै, त’ हमहूँ सेहए कहलौँ । साँचे कही त’ हम घरबालीकेँ नाम ल’ क’ नइँ बोलबै छी । नितिशके मम्मी कहिक’ बोलबै छी ।

हँ त’ हमर घरबाली , ओहो, माने नितिसके मम्मी बड़ कहैत रहै छेलै “आब बच्चासभ नम्हर भ’ गेलै, हमहूँ कोनो काम कैरती ! “महज हमरा कोनो काम नै जचै ,जहिमे हम हुनका साथ द’ सकितियै । हम ठहरली मास्टर, तैं हमर नजैर स्कुले पर जा ठहरै छेल ।

अन्ततः दू साल पहिने हुनका एकटा स्कुल किन देलियै । आब हुनकर नाम ’नंगुर्वावाली’ आ ’नितिश के मम्मी’ के अलावा ’निलम मैडम’ सेहो पैड़ गेलै ।
मैडमके स्कूलमे एकटा सफाइ कर्मचारी छै, जिनकर नाम हमरा थाह नै छै। पुछलियै त’ ओ कहलकै “हमरा लोगसब सिरहावाली कहै छै।“ स्कूलमे रहल ओकर हाजरी खाता पर सिरहेवाली लिखल छै ।

आइकाइल दिवालीमे सरसफाइ के विशेषे महत्व होइत छै, मुदा सिरहावाली आठ दश दिनस’ गायब छेलै । मोबाइलो नम्बर नै रहै । पता लागल जे उसब आइकाल ढकिया कोनिया बनावै आउर बेचैमे लागल छै । छैठ पर्वमे ढकिया, सूपा आ कोनिया बिना काम नै चलै छै ।

निलम मैडम हमरा कहलनि जे एक बेर बजार जा क’ सिरहाबालीके खोजियौ । भेटत त’ कहबै मैडम कहलक तुरन्त भेटै ल’ ।

हम गेलिएै खोज’ लए । पहिने सब कोना, कात करोटमे खोजलियै, कतौह ने देखलियै । निराश भ’ जौं घुम’ लागल रहियै त’ देखलियै बिचे ठाम एकटा तरकारीवाली सँगे सटले किछु कोनियाँ, सुपा सब राखल रहै, मुदा आदमी कोइने ।

हम सोचलियै ’केकरा पुछू ?’ तएँ हम किछ फैंटके ठाढ़ भ’ इन्तजार कर’ लागलियै, मुदा तुरन्ते एकटा महिला आइब ओइ ढकिया कोनियाके मलिकाइनके स्वरूप ठाढ़ भ’ गेलै ।

हमरा लागल ई किछु बता सकैय’ सिरहावाली के बारेमे । कम स’ कम समाध त’ कहि देबै ।’ से हम गेलियै आ पुछलियै, “सिरहावाली नहि एल छै ?“ एते सुनैत ओ हमरे स’ पुछ’ लागलै “कोन सिरहावाली, जेठकी कि छोठकी?“ उ बाइजते बाइजते जोड़लक“ हमहुँ छियै सिरहेवाली।“ हमरा त’ मुह स’ हँसी निकलैत निकलैत रहिगेल । अनचिन्हार महिला लग केना हँसी । हम सहज भ’ पुछलियै

“ अहाँ कोन छियै, जेठकी कि छोठकी ?“ त’ ओ अति सुन्दर आ स्वस्थ कायाके मलिकाइन जकरा ओइ ढकिया कोनियाँ स’ अलग ठाढ़ भेला स’ मात्र कोइने ’ई डोमिन छियै ।’ कहि सकितियै, सादगी पूर्ण मुस्कान के साथ कहलक,

“ हम छोटकी छियै । की बात छेलै कहू, हम कहि देबै, उ हमर दिदी छियै ।“
हम हुनका निलम मैडम बाला समाध कहि क’ स्कूल दिस चलि आबैत रहलियै । बाट भैर मनमे ई सबाल चलैत रहल ’एकरो त’ किछ नाम हेतै? !’

Author:



क्याटोगरी छान्‍नुहोस