सीताराम अग्रहरी
मैं नापसन्द करता हूं

ये आग मेरे करीब आती जा रही है
बल्कि आ चुकी है
वे जानते हैं मैं उन्हें नापसन्द करता हूं लकड़बग्घों को
जंगली कुत्तों के भीड़ को
आदमी को अपने तीखी दांतों के तले
देखें जो आदमी के सपनों को अपनी पंजों के तले
मैं हर जंगलीपन को नापसन्द करता हूं
पुण्य के नाम पर
कर्त्तव्य के नाम पर
न्याय के नाम पर
और क्रांति के नाम पर
बड़े बड़े पाप
नाटक नाटक और नाटक
समाजवादी प्रहसन
प्रजातंत्रवादी प्रहसन
स्वार्थ-तंत्रीय म्युजिकल चेयर रेस
तंत्र बना पाजियों का खेल
नापसन्द करता हूं झुनझुना दर्शनवाद, पाखंडवाद ,
कर्मकांड वाद
नापसंद करता हूं कुंकुम में सजे-धजे धुंधकारियों को
लाक्षागृहीय प्रपंची राजधर्म
राजधर्म के नाम पर झूठ- कर्म को
कब-तक सहते रहें खोखले आदेश
लोग मांग रहे हैं नया परिवेश
खोज रहे हैं गण के सच्चे गणेश
जन जन में क्लेश
ड्रैकुला बने मसीहा
दिल में नाखुशी,
आंखों में सन्नाटा,
चेहरे पर मायूसी
क्या इसी दिन का वादा था
क्या यही इरादा था!