नइँ जाउ न बिदेश यौ पापा

श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’

छठिक बाद गाम खाली भऽ रहल छल । केकरो उड़ान तय, तऽ केकरो उड़ानके टिकट आबयबाला छल । तीन चारि दिन पहिने हर्षोल्लासमे रहल गामसऽ सौन्दर्य हरा रहल छल । केओ अपन बेटा, केओ अपन बाप, तऽ केओ अपन पतिसऽ अलग होएबाक पीड़ामे छल । समुच्चे गाम कानैत छलै ।

गामक चौबटियामे एकटा कारुणिक दृष्य देखाएल । ‘नीकसऽ रहिहेँ, सब कोइ मिलके, तीनीये सालमे आबि जेबौ’ कान्हपर झोरा धरैत बाजल एकटा युवा—रामकुमार । डबडबायल आँखिसँ पत्नीकेँ कहि रहल छल ‘बुढ़बा–बुढि़याके नीकसऽ देखभाल करैत रहिहेँ, बेमार रहैत छै, एकेटा बेटा छियै, तैंँ आबसऽ हमरो भूमिका तोरे निर्वाह करए पड़तौ ।’

धनकटनीसँ आबि रहल किछु महिलासभ सेहो ठाढ़ भऽ दृष्य देखए लागल । हुनक बेटी मुनियाँ अक–न–बक ठाढ़ छल । दुनू आँखिसऽ अबिरल नोर बहि रहल छल ।

मुनियाँ भरि पाँजके अपन पिताके पकडि़के हाक उठाकए जोर–जोरसऽ कानए लागल । रामकुमारोके धैरजके बान्ह टुटि गेल । आँखिसऽ भभा–भभाकऽ नोर बहए लागल ।

बेटी दिस तकैत मलिन स्वरमे ‘बेटी ! तुँ कथीलऽ कानै छेँ, १२ के रिजल्ट आब आबि जेतौ, पैसा पठा देबौ, बीबीएमे नाम लिखा लिहेँ, नीक सऽ पढि़हेँ, एबौ तब धुमधामसऽ बियाह–शादीके विषयमे सोचबै ।’ मुनियाँ भरि पाँजके अपन पिताके पकडि़के हाक उठाकए जोर–जोरसऽ कानए लागल । रामकुमारोके धैरजके बान्ह टुटि गेल । आँखिसऽ भभा–भभाकऽ नोर बहए लागल ।

बेटीके पीठ थपथपबैत बाजल ‘नइँ कान बेटी, तोहर सभ सपना हम पुरा करबौ ।’ पत्नी निभाकेँ सेहो नहि रहल गेल । परदेश जा रहल पतिके देह पकडि़के कानए लागल ।
हुनक जेठका बेटा राजु मोटरसाइकिलमे किक मारैत बाजल ‘पापा, एहिठाँ पाँच बजि गेल, राजबिराजसऽ बस खुलएमे आधा घण्टा मातरे टाइम बाँकी छै ।’

‘पापा यौ,पापा..’ कहैत बेटीक अर्रहाइट मारि रहल दृश्य चौबटियाकेँ भाबुक बना रहल छल ।

मोटरसाइकिल दूर होइत जा रहल छल, सबहक रोदन आओर उग्र भऽ रहल छल । रामकुमार उनैट उनैट ताकि रहल छल । एम्हर मुनियाँ चिकरि रहल छल ‘पापा यौ पापा, नइँ जाउ न बिदेश यौ पापा… पापा…घुरु न यौ पापा ।’

 

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