श्यामसुन्दर यादव (पथिक)
नेपालक मिथिला–मधेशक लोकसाहित्यमे लोकगाथाके विशिष्ट महत्व रहैत आएल अछि । लोकगाथा बिना लोकसाहित्य अधुरा मानल जाइत अछि । लोकसाहित्यमे सामाजिक जनजीवनक यथार्थ चित्रण सङ्गहि इतिहासक सजीव चित्र सहज रुपमे प्रष्फूटित होइत अछि । एहन लोकसाहित्य वा लोकगाथाके कोनो लेखक वा रचनाकार नहि होइत अछि । एकर मूल जडिधरि पहुँचकए पार पाओनाइ सेहो असम्भवे जँका अछि । लोकसाहित्य एवम् गाथा स्वफूर्त रुपमे एक पुस्तासऽ दोसर पुस्तामे हस्तान्तरण होइत आबिरहल जेबाक परम्परा अछि ।
लोकगाथामे वीरता, प्रेम, युद्ध, अन्याय, अत्याचार, विजयी, तन्त्रमन्त्र, जादु–टोना सहितके विषय प्रसङ्ग सभ सहज रुपमे प्रकट भेल पाओल जाइत अछि । मिथिला क्षेत्रक लोकगाथा समभे सलहेस (पासवान), दिना–भद्री (सदा), बसावन–बखतौर (यादव), अमरसिंह–जयसिंह (मलाह), रइँया रणपाल, धनपाल (पालक्षेत्रिय), रन्नू सरदार (सदा), गरिवन भुइञा (धोबी), महकार (कोइरी), श्याम सिंह (डोम), लालवन बाबा (राम), लोरिकाइन (यादव), बेनीराम (हजाम), चुहडमल (पासवान), विजयमल (मलयवंशंीय क्षेत्रिय), कारिख पजियार (पासवान), ज्योति (दुसाध), कृष्णाराम (यादव), नैकाबनिजारा (तेली), फेकुदयालराम (हलुवाई), गणिनाथ गोविन्द (कानू, हलुवाई,) दुलरा दयाल (मलाह), कुवँरबृजभान, वंशंीधर ब्राम्हण, हंसराज–वंशराज, लवहैर–कुशहैर, सारङ्गा–सदावृक्ष, गोपीचन्द, सोरठि, सती बिहुला सहितके अछि । एहने कतेको नामसऽ दर्जनो गाथासभ मिथिला मधेशमे प्रचलित अछि । एहन लोकगाथासभ गाथा गायन महराई, नाच तथा विषय कीर्तनके रुपमे पुस्तौपुस्तासऽ प्रस्तुत होइत आबिरहल अछि । उपरोक्त गाथा सभमे सामाजिक, साँस्कृतिक एवम् मिथिलाक तात्कालिन लोकजीवनके ईतिवृतान्त वर्णन रहैत अछि ।
लोकगाथामे वर्णन कएल गेल अनुसार ओ दूनु भैयारी अन्याय, अत्याचार, शोषण दमन विरुद्ध सङ्घर्ष कएलाक कारणें मिथिला क्षेत्रमे वर्तमानमे सभ जाति एवम् समुदायके बीच लोक देवताक रुपमे पूजित अछि । नेपालक सप्तरी, सिरहा, सुनसरी, मोरङ्ग, झापासहितक जिलाक विभिन्न गामसभमे मुसहर जातिक सघन बसोबास रहल अछि ।
लोकगाथासभमध्ये मिथिला क्षेत्रमे दिनाभद्री मुसहर अर्थात सदा जातिक दूनु भैयारीक लोकगाथा जनजनमे चर्चित अछि । लोकगाथामे वर्णन कएल गेल अनुसार ओ दूनु भैयारी अन्याय, अत्याचार, शोषण दमन विरुद्ध सङ्घर्ष कएलाक कारणें मिथिला क्षेत्रमे वर्तमानमे सभ जाति एवम् समुदायके बीच लोक देवताक रुपमे पूजित अछि । नेपालक सप्तरी, सिरहा, सुनसरी, मोरङ्ग, झापासहितक जिलाक विभिन्न गामसभमे एहि जातिक सघन बसोबास रहल अछि ।
सप्तरी जिलाक बोदेवर्साइन नगरपालिका स्थित जोगिया गाममे कालु सदा आ नीरसोको कोखिसऽ दू पुत्र दिना आऽ भद्रीके जनम भेल छल । दिना जेठ आऽ भद्री छोट छल । बाल्यकालसऽ दूनु भैयारी बीर एवम् साहसी छल । दूनु भाइ कुस्ती खेलएमे माहिर छल । सामाजिक न्यायके सच्चा पहरदारके रुपमे प्रस्तुत भेलाक कारण हुनका सभक बीरताके ओहि समयमे जन–जनमे छल । हुनका सभक मुख्य पेशा खेती किसानी छल । लोकगाथामे वर्णन भेल अनुसार भैया दिना आऽ भाइ भद्री पाँच मनके कोदारि चलवैत छल । दूनु भाइ सामन्ती प्रथाके कट्टर विरोधी छल । गिरहत (मालिक)के ‘जी हजुरी’ विरुद्धक मिशालके रुपमे छल । गिरहत दास नहि भऽ कए स्वतन्त्र रुपमे मजदुरी करए मुसहर समुदायके प्रेरित करैत छल । मजदुर उपर दमन शोषण एवम् काम कराकए मजदूरी नहि देबएवाला विरुद्ध कडा रुपमे उतरबाक लेल दूनु भाइ प्रेरित करैत छल ।
दिना भद्री दूनु भैयारीके विआह सप्तरी जिलाक बरहा गामक फुकन सदाक बेटी हंसा आऽ संझा सङ्ग भेल छल । जोगिया जाँजरके सामन्त कनक सिंह मुसहर सहित उपेक्षित, उत्पिडित एवम् निम्नवर्गक व्यक्तिसभके जबरदस्ती काममे लगाकए मजदूरीधरि नहि दैत छल । तन्त्रमन्त्रके जानकार भेलाक कारणें धामी कनसिंहके नामसऽ जानल जाइत छल ।
लोकगाथामे चर्चा भेल अनुसार दिनाभद्री दूनु भाइ सुतल छल । भोरेभोर गिरहत कनक सिंह दिना–भद्रीके अङ्गनामे जाऽ कए रवाफ शैलीमे ‘रे दिना भद्री, समुच्चे गामके हर जन बेगारीमे रहतै, तोहुँ सभ सबेरे चलि आबिहे’ कहलक । हुनक रवाफी आदेश सुनि भोरका निन्दमे रहल दूनु भाइके तामसके सिमा नाघि गेल । ओ सभ घरसऽ बाहर आबिकए कनक सिंहके ठोंठ पर हाथ दऽ कए गर्दनिया दैत ‘की बाजले, तों बेगारी खटए हमर अङ्गनामे आबिकए आदेश करबे, तोरा जे करए छौ, कऽ लिहे’ कहैत अङ्गनासऽ बाहर निकालि दैत अछि ।
दिनाभद्री सामन्ती प्रथा एवम् हैकमवादी शैलीके कट्टर विरोधी छल से बात लोकगाथासऽ पुष्टि होइत अछि । लोकगाथामे एना उल्लेख अछिः कहियो नै कएलौ हम खुरपी कोदारि बोनी, कहियो नै जानिओ हौ धामी पैंच हो उधार, अर्थात हमसभ कहियो खुरपी कोदारि चलाकए जनबोनि नहि कएलौं आऽ नहि पैंच उधार नहि खेने छी ।
सप्तरीक विष्णुपुर गाउँपालिका निवासी लोकगाथा गबैया सातैन रामकें अनुसार दूनु भाइके वीरताके विषयमे दोसर प्रसङ्ग सेहो अछि । सप्तरीक भारतीय सिमावर्ती क्षेत्र कुनौलीमे जोराबर सिंह नामक सामन्त छल । ओ क्षेत्रक गरिब एवम् विपन्न समुदायके शोषण, दमन एवम् अत्याचार करैत छल । एतबे नहि नारीक ईज्जतसङ्गे खेलवाड करैत छल ।
यौनपिपासु प्रवृतिके ओ कुनौली क्षेत्रमे पुव, पछिम, दक्षिण वा उत्तरदिसऽ पहिलबेर ससुरा जेनिहारि नव विवाहिताके एक रातिके लेल जर्वदस्ती पकरि लाबैत छल । एक राति अपनालग राखलाक बाद मात्र नव कनियाँके डोली जाऽ दैत छल ।
सामन्त जोरावर सिंहक अत्याचारके विषयमे लोकगाथा महराइमे एना वर्णन कएल गेल अछिः
जोरावर सिंह राजपूत पूरबक कनियाँ पछिम नहि जाय दैत अछि, पछिमक कनियाँ पूरब नहि जाय दैत अछि, दक्षिणक कनियाँ उत्तर नहि जाय दैत अछि, उत्तरक कनियाँ दक्षिण नहि जाय दैत अछि ।
एहि प्रकारे अनेका अनेक दमन, शोषण एवम् अत्याचार होइत छल । दिना भद्री दूनु भाइके एहन अत्याचार सहन नहि भेलन्हि । ओ दुनु भाइ जोराबरके सबक सिखाबए जुक्ति निकाललैन्हि । दिना भद्री दूनु भाइ नव कनियाके डोलीमे बसि गेलन्हि आऽ कहरियाके कहलन्हि जे डोला जोराबर सिंहके घर लऽ कए चल । डोला जोराबरके दरबारमे लऽ गेल । तकरबाद दूनु भाइ पहमानी लडिकए जोराबरके मारि दैत अछि । एकटा अत्याचारीके अन्त्य कऽ कए ओहि क्षेत्रक जनताके आरामके साँस लेवाक अवसर प्रदान कएलन्हि ।
दिनाभद्रीके वीरता आऽ स्वाभिमानीपनाके विषयमे एहन कतेको प्रसङ्ग लोकगाथा एवम् लोकश्रृतीमे पाओल गेल अछि । महापुरुषक विषयमे कतेको विषय काल्पनिक जँका सेहो बुझाइत अछि त कतेको घटनाक्रम विवादित जँका सेहो बुझाइत अछि । यद्यपी ओ दूनु भाइप्रतिके श्रद्धा एवम् विश्वास जनजनमे पाओल जाइत अछि ।
दिनाभद्रीके मृत्युके विषयमे दूटा मत रहल अछि । पहिल मत अनुसार बुधनी धमियाइन जे तन्त्रमन्त्र एवम् जादूटोनामे निपूण छल । ओ धमियाइन जादुटोना आऽ छल कऽ कए दिनाभद्री दुनू भाइके कटैयाक जङ्गलमे मारने छल । जे कटैया वर्तमानमे रुपनी गाउँपालिकामे परैत अछि । दिनाभद्रीके मृत्यु भेलाक बाद हुनका सभक माय निरसो बघेश्वरी भगवतीके पुजाआजा कऽ कए खुश करैत बुधनी धमियाइनके सेहो मरवा देलक से बात दिनाभद्री लोकगाथामे चर्चा कएल गेल अछि ।
लोकनायक दूनु भाइके मृत्युक विषयमे दोसर मत सेहो अछि । दिनाभद्री अपन मामा बहुरनके साथमे लऽ कए शिकार खेलए कट्टैया जङ्गलदिस जा रहल छल । बाटमे बहुतरास समस्या सभ आबैत अछि तथापि ओ आगु बढैत गेल । जङ्गल पहुँचलाक बाद पोटरा गिदड (बनेल प्रजाती) आगुमे देखैत अछि । कान्ह परक धनुष निकालिकए तीर प्रहार कएलक । तीर लागलाक बाद पोटरा नामक गिदड तत्क्षण प्राण त्याग कऽ दैत अछि । मुदा राजा सलहेस ओहि गिदडके पुनरजीवन दैत अछि । तकर बाद क्रोधमे रहल पोटरा गिदड दिना–भद्री सङ्गे भीडन्त करैत अछि । घण्टोधरि उठापटकी भेलाक बाद दूनु भाइके मृत्यु भेल बात लोकगाथामे चर्चा कएल गेल अछि ।
एहि तरहे दिनाभद्रीके वीरता आऽ मृत्युके विषयमे बहुतरास विषयसभ अबैत अछि । यद्यपी ओ विषयसभ अपनेआपमे सुक्ष्म अध्ययन अनुसन्धानके विषय भऽ सकैत अछि । लोकनायक दिनाभद्री सङ्गे जुडल जोगिया जाँजर गाम वर्तमानमे बोदेवर्साइन नगरपालिकामे परैत अछि । जाहिठाम दिनाभद्रीके जनमस्थान स्थान अछि । जोगिया सऽ पूव नेंगडाबैरिया गाम परैत अछि । ओहि ठामक जीवन सदा मृतक दूनु भाइके किरियाकर्म कएने छल ।
सप्तरी जिलामे कटैया गाम अछि । साविकके कटैया गाउँ विकास समिति हाल रुपनी गाउँपालिकामे परैत अछि । कटैयामे दिनाभद्री दूनु भाइके नामसऽ मन्दिर बनाओल गेल अछि । दिनाभद्री मारल गेल ठामके मरौटी, मारल गेलाक बाद उठाकए राखल गेल ठामके रखौटी कहल गेल । हिन्दू परम्परा अनुसार दाहसंस्कार कएल गेल ठामके जरौटी कहि सम्वोधन कएल जाइत अछि ।
दिनाभद्री लोकगाथामे हरिया तमोलिनी आऽ जिरिया लोहार्नी दू गोटा तान्त्रिक युवतीके चर्चा सेहो अछि । ओ दूनु युवती तन्त्रमन्त्र विद्यामे निपुण छल । दूनु युवती तन्त्र विद्याक प्रतीक छल । ओना तन्त्र विद्याक विकास मध्यकालमे भेल इतिहासविद् प्रा. डा. पीताम्बरलाल यादवके कहब छन्हि ।
सामन्ती क्रियाकलाप ओहि समयमे चरम उत्कर्षमे छल । गरिबी सेहो ततबेक छल । किछु सिमित व्यक्तिके अधिनमे जमिन छल । गरिब एवम् विपन्नवर्गक महिला पुरुष कृषी एवम् घरेया मजदूरके रुपमे काज करए बाध्य छल । दमन शोषणसऽ आजित जनसमुदायके पक्षमे बाजयवाला लोग प्रायः नगण्य छल । ओहन अवस्थामे दिनाभद्री अन्याय अत्याचारमे परल लोकक लेल सहारा मात्र नहि संघर्ष सेहो करैत छल । तात्कालिन अवस्थाके वर्णन दिनाभदी सम्वन्धी गीतमे एना प्रस्तुत कएल गेल अछि ः
कोन गरु परलौं, हौ धामी बड भोरे छेकल दुआर । अपन बहु बेटी देलखिन घर सुताय । हमर बेटी पुतौह रखलनि नाङ्गट उघार, थारु दोनवार जन भेल तैयार । आजुक हम सभके देबौ चारि सेर बोनि । दिना भदरीके देबौ पसेरि भरि बोइन ।
अर्थात धामी कनकसेनके सम्वोधन करैत आइ कोन काज परल अहाँके जे भोरे हमर सभक दुआरि आबि गेलौं । अपन बहुबेटीके घरमे झापितोपि कए राखलौं । हमर बहुबेटीके उघारे राखलौं । थारु दोनवार मजदूरी करए तैआर होइत अछि । आइ हम सबके चारि सेर बोनि मुदा दिनाभद्रीके पसेरी भरि अर्थात पाँच किलो मजदूरी देबाक बात उपरोक्त गीतमे उल्लेख अछि ।
ओहि समयमे दिनभरि काम कएलाक बाद कृषी मजदूरके चारि सेर धान मजदूरीके रुपमे बोनि देबाक प्रचलन छल । वर्तमानमे महिला कृषी मजदूरके पाँच किलो त पुरुष मजदुरके १० सऽ लऽ कए १५ किलोधरि बोनि देल जाइत अछि । अर्थात एखनो समाजमे महिला पुरुषके नाममे बोनिमे असमानता अछि ।
दिनाभद्रीक समयके विषयमे एखनधरि ठोस किटान नहि भऽ सकल अछि । यद्यपी दिनाभद्री दूनु भाइके कतेको प्रसङ्ग राजा सलहेश सङ्ग जोडलाक कारणे समकालीन होयबाक कतेको विद्वानसभक अनुमान अछि ।
विभिन्न ऐतिहासिक तथ्य एवम् लोकगाथामे उल्लेख भेल विषयवस्तु, घटना, परिवेश एवम् उल्लेखित गतिविधीके आधारमे दिनाभद्री दूनुभाइ मध्यकालीन समयके होयबाक अनुमान कएल जाऽ सकैत अछि । समाजमे रहल शोषण, दमन, अन्याय अत्याचार विरुद्ध दूनु भाइद्वारा कएल गेल साहसिक काजसभके कारणे मिथिला मधेशक लोकजीवनमे देवताके रुपमे पूजित अछि । गामघर कएल जायवाला अन्य देवी देवताके पूजा करैतकाल दिनाभद्रीके नामसऽ सेहो चढावासहित पूजा कएल जाति अछि ।
समग्रमे, लोकनायक दिनाभद्री शोषण, दमन, अन्याय, अत्याचारके कट्टर विरोधी छल । ओ सदैव अपन जीवनकालमे एहने जानके पर्वाह नहि करि संघर्ष करैत आएल अछि । तैं समाज एखनो दिनाभद्री दूनु भाइप्रति नतमस्तक अछि । ओ एहि लोकमे नहि रहलाक बादो हुनका सभक नाम श्रद्धासऽ लेल जाइत अछि ।
(लेखक यादव, मैथिली साहित्य परिषद राजविराजक उपाध्यक्ष छथि ।)