नन्दलाल आचार्य
केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?
नाम जपिक खाइबला भेलै बुद्धिमान्
भ्रष्ट पदलोलुप मात्रे महान् देखैछी ।
केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?
बहुत भेलै विचारके रौदी यत्रतत्र
पैग स्वरक मात्रे यसगान देखैछी ।
केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?
दोसरके छिट्की मारि आगा बडैबालाके
कोहुलका नेपालके दरबान देखैछी ।
केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?
पसिनाके मूल्य खोजतेखोजते हम त
बडका छोडका सबके एकसमान देखैछी ।
केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?